शुक्रवार, 1 मई 2015

एल. ई.डी. (L.E.D.)

एल ई डी

 साप्ताहिक लेख - 1

लीजिए आपके सामने प्रस्तुत है 'Science Sector '(sciencesector.blogspot.com) ब्लॉग का पहला लेख जो L.E.D. के ऊपर केंद्रित है । उम्मीद है आपको पसंद आएगा ।                                            ------------------------------------------------------------


हाईस्कूल, इंटरमीडिएट में हम एल ई डी के बारे में बस इतना ही पढ़ते हैं कि एल ई डी की फुल फॉर्म क्या है और परिभाषा क्या है ? बस उसे तोते की तरह रट लिया कि फुल फॉर्म "लाइट एमिटिंग डायोड" है और ये विद्युत् ऊर्जा को विकिरण ऊर्जा में बदलता है । बस हो गया क्लेश ख़त्म ###  लेकिन क्या कभी सोचा है की वास्तव में होती कैसी है एल ई डी दिखती कैसी है ???और अगर आप जानते हैं तो बहुत अच्छा है लेकिन फिर भी इसे लेकर ढेर सारे प्रश्न होंगे जो आप मुझसे पूछ सकते हैं ।लीजिए तो जानते हैं अब एल ई डी के बारे में । सबसे पहले तो आपको बता दें कि आपके मोबाइल चार्जर में जो इंडीकेटर

लगा है वो एल ई डी है ,आप जो टॉर्च जलाते हैं उसमे भी एल ई डी ही जलती है
 (देखिए image 2और 3)
Image 2 

image 3

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है LED (प्रकाश उत्सर्जन डायोड) । तो इसके नाम से ही यहाँ 3 बिंदु बन गए 1. प्रकाश - ये तो हम जानते ही हैं 2. उत्सर्जक - इसका अर्थ है निकालना 3. डायोड - इसके बारे में मैं बताता हूँ
विद्यार्थियों और पाठकों को डायोड नाम सुना सुना लग रहा होगा !   और लगेगा भी  क्यों नहीं इंटरमीडिएट में संधि डायोड एक पूरा चेप्टर है
तो ले चलते हैं आज आपको डायोड की यात्रा पर --कक्षा 7 और 8 में हम पढ़ते हैं चालक और अचालक के बारे में । चालक वे पदार्थ होते हैं जिनमें विद्युत् धारा आसानी से जा सके जैसे -लोहा(Fe), ताँबा(Cu) और अचालक वे पदार्थ होते हैं जिनमें विद्युत धारा नहीं जाती जैसे सूखी लकड़ी, प्लास्टिक ।

किन एक तीसरी चीज भी होती है जिसमें ये दोनों गुण होते हैं जिसे हम अर्धचालक (सेमीकंडाक्टर) कहते हैं । जैसे जर्मेनियम(Ge) और सिलिकॉन(Si) दोनों शुद्ध ठोस निज अर्धचालक हैं ।

 इनकी स्थिति बिल्कुल हम मनुष्यों जैसी है । हम सच भी बोलते हैं और झूठ भी वैसे ही ये दोनों काम करते हैं इनका यह व्यवहार बाहरी तापमान पर निर्भर करता है । जब तापमान 0 K होता है तो ये अचालक की तरह व्यवहार करता है और जैसे जैसे तापमान बढ़ाते हैं वैसे वैसे इसमें सुचालक के गुण आ जाते हैं लेकिन बहुत कम ।यही समस्या है  लेकिन हर समस्या का एक समाधान होता है तो इसका भी है और वो है डोपिंग, डोपिंग का मतलब है कि शुद्ध पदार्थ में कोई दूसरा अपद्रव्य(इम्प्योरिटी) मिला दें ।आइए अब डोपिंग को देखते हैं ---अर्धचालक में जब पांच संयोजकता(बेलेंसी) [संयोजकता को समझने के लिए आपको बेसिक कैमिस्ट्री आनी चाहिए ।] वाला परमाणु जैसे फास्फोरस या आर्सेनिक मिलाने पर जो अर्धचालक बनाता है उसे n-प्रकार का अर्धचालक कहते हैं और जब अर्धचालक में 3 संयोजकता वाला परमाणु जैसे ऐलुमिनियम या बोरोन मिलाते हैं तो p- प्रकार का अर्धचालक बनाता है ।अब डोपिंग तो हो गयी लेकिन कितना अपद्रव्य मिलाने पर कितनी चालकता बढ़ेगी इसका अंदाजा भी ले लीजिये । तो आपको बता दें कि 10 करोड़ जर्मेनियम परमाणुओं में अपद्रव्य का सिर्फ एक परमाणु मिलाने पर इसकी चालकता लगभग 16 गुनी बढ़ जाती है ।
अब n और p अर्धचालक पर वापस आ जाइए । n और p प्रकार के अर्धचालक में अंतर ये है कि n वाले में इलेक्ट्रोन और p वाले में होल होते हैं । और अंततः जब p और n प्रकार के अर्धचालक को जोडकर जो कम्पोनेन्ट बनाता है उसे कहते हैं 'डायोड' (देखिए image 4 और 5)
Image 4

Image 5
डायोड में विद्युत् धारा तभी बहती है जब इसका p सिरा बैटरी के + से और n सिरा बैटरी के - से जुड़ा हो (इसके आलावा और भी कई स्थितियां संभव हैं जिनमें डायोड में धारा बहती है ) ।अगर आपको रियल में डायोड देखना है तो अपना पुराना खराब मोबाइल फोन चार्जर खोलिए और जैसा कि इमेज में दिखाया गया है वैसा कम्पोनेन्ट आपको मिल जाएगा

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डायोड की यात्रा अब समाप्त हुई अब लौटकर अपनी एल ई डी पर आते हैं । चूँकि एल ई डी भी एक डायोड है अतः प्रश्न ये उठता है कि  डायोड से प्रकाश निकालता कैसे है अब ये समझिये ----
जब डायोड में विद्युत धारा प्रवाहित होती है तो n साइड के इलेक्ट्रोन जंक्शन को पार करके p साइड में जाने लगते हैं और p साइड होल जंक्शन को पार करके n साइड में जाने लगते हैं इसलिए बीच वाले क्षेत्र में होल्स बढ़ जाते हैं इसे फिर से उसी अवस्था में लाने के लिए इलेक्ट्रोन, होल्स से जुड़ जाते हैं । (देखें इमेज 6)
Image 6

और जब ये जुड़ते हैं तो ऊर्जा मुक्त होती है जो कि फोटॉन ( इलेक्ट्रोमेग्नेटिक वेब्स ) के रूप में निकलती है । ये तभी दिखाई देता है जब निकलने वाली तरंग की वेब्लेन्थ 450 से 660 नैनोमीटर के बीच होती है, इससे अधिक वेब्लेन्थ की तरंग इंफ्रारेड होगी जो आप डाइरेक्ट आँखों से नहीं देख सकते। आपको बता दें इंफ्रारेड एल ई डी हमारे टी वी रिमोट में लगी होती है आप जब चैनल बदलते हैं तो उस एल ई डी से इंफ्रारेड वेब निकलती है जिसे आप मोबाइल के कैमरे की सहायता से देख सकते हैं । आपको एल ई डी से रोशनी निकलती हुई दिखाई देगी करके जरूर देखिए ।

अब प्रश्न ये उठता है कि अलग अलग रंगों की एल ई डी में ये रंग आते कैसे हैं ? इसका सीधा सा सिद्धांत है आपको उस रंग की वेबलेंथ सीमाएं पता होनी चाहिए (इसके लिए देखिए image 7)
Image 7

और अलग अलग रंगो को प्राप्त करने के लिए अलग अलग अर्धचालक पदार्थों का उपयोग करना पड़ता है ।(देखिए image 8)
Image 8

अब तो आप समझ ही गए होंगे कि एल ई डी क्या होती है और उससे प्रकाश कैसे निकलता है ।

अब थोडा प्रैक्टिकल भी कर लीजिए -----

एक व्हाइट एल ई डी लीजिए और नीचे दिए गए सर्किट के हिसाब से जोड़िए( देखिए image 9)
Image 9

 इस इमेज में आपके पास एक चीज नहीं है वो है रजिस्टेंस इसलिए आप रजिस्टेंस को हटा सकते हैं लेकिन इसे हटाने से आपकी एल ई डी थोड़ी जलने के बाद डैमेज हो जाएगी लेकिन आपका प्रयोग सफल हो जाएगा (रजिस्टेंस को हिंदी में प्रतिरोध कहते हैं इसके बारे में अपनी किसी दूसरी पोस्ट में जरूर बताऊंगा।)पर एल ई डी तभी जलेगी जब एल ई डी के + वाला सिरा बैटरी के + से और माइनस वाला - से जुड़ा हो लेकिन एल ई डी पर ऐसा कुछ लिखा तो होता नहीं है !जैसा की बैटरी पर लिखा होता है ।
तो देखिए एल ई डी के +,- पहिचान कैसे करते हैं-  1.एल ई डी का + वाला तार - वाले से बड़ा होगा।अगर दोनों तार बराबर हैं तो ये देखिए 2. इसके साइड से एक काट का निशान जरूर होगा जो माइनस वाले तार की पहिचान है ।(देखिए इमेज 10)
Image 10
एल ई डी की आतंरिक संरचना और प्रकाश उत्सर्जन को और अच्छी प्रकार समझने के लिए देखें
(इमेज 11,12 )
Image 11

Image 12

पूरी पोस्ट पढने के लिए धन्यवाद ! उम्मीद करता हूँ मेरा प्रयास आपको पसंद आया होगा । 


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4 टिप्‍पणियां:

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